बैठा था फूलों की बगिया में एकटकी लगाए, कि कहीं से तेरी खुशबू आये,
था बिस्वास पर यकीं न हुआ, जब तेरे कोमल हाथों ने मुझे छुआ।
सोचा एक पल को कि रोक लूँ इस दिल को,
पर हो न सका, खुले चमन में अकेले उड़ न सका।
वैसे खोना मेरी फितरत है, सपनों की दुनिया में,
परन्तु अब अंधकार सा छाया है अपनी ही दुनिया में।
घबराहट कहती है, कि आग लगा दूँ इस दिल को, किन्तु मजबूर,
आखिर इसी दिल में तेरा चेहरा सजाया हूँ, तुझे पाने की आस लगाया हूँ।
रोका कई बार कि न बोलूं, दिल में है जो राज़ न खोलूं,
पर नाइंसाफी होगी इस दिल से, खुद को कैसे देखूंगा इस दिल से,
तुझको कैसे देखूंगा इस दिल से।
वादे तो किए हैं मैंने कई सारे, पर एक वादा और करूँगा,
पकड़ ले मेरा यह हाथ, फिर अनंत आसमान की छोटी छुँउन्गा,
हो घनघोर वर्षा या परचंड तूफान, तेरा हाथ पकड़ उड़ता ही रहूँगा,
उड़ता ही रहूँगा, उड़ता ही रहूँगा, उड़ता ही रहूँगा।
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