रात-रात भर जाग कर रहा खड़ा संघ दुखियारी के,
झुका नहीं हटा नहीं मर मिटा समाज के गतियारी में,
रोड डेल लाख कभी समाज कभी नेता के रैली नारों ने ,
झुका नहीं हटा नहीं मर मिटा समाज के गतियारी में,
राजा थे, कलाकार भी, लड़ते थे सेना की सेनानी में।
बना दिया दलित इन अंग्रेज़ों के चंद किताबी कहानी ने ,
पासी हैं पासी सीना ठोक कर कहेंगे,
इन समाज के चंद साहूकारों से कि हटा दो आखों से यह पट्टी,
सूरज निकल चूका है , ऊंच-नीच जाती का खेला बदल चूका है।